परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षक थे भगवान बिरसा मुंडा - प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठीnarmadanewstimes. in


 परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षक थे भगवान बिरसा मुंडा - प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी


अमरकंटक । इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के बिरसा मुंडा चेयर के तत्वावधान में भगवान बिरसा मुंडा के 150 वीं जयंती समारोह में जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। सर्वप्रथम माननीय कुलपति जी ने मुख्य अतिथि एवं विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों के साथ विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थापित भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित किया। इसके बाद विश्वविद्यालय के अकादमिक कक्ष में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी ने सभा को संबोधित करते हुए यह कहा कि यह पूरा क्षेत्र भगवान बिरसा मुंडा से अभिप्रेरित है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के निवारण तथा राष्ट्र के प्रति उत्पन्न हो रही समस्या के निवारण हेतु अग्रणी योगदान दिया। वस्तुतः हमारे आस-पास कोई भी समस्या होती है तो प्रकृति में उस समस्या के समाधान भी विद्यमान होते है। प्रकृति में ऐसा कोई पौधा नहीं जिसमें औषधीय गुण न हो। भगवान बिरसा मुंडा में परंपरागत जड़ी बूटियों की समझ तथा परंपरागत चिकित्सा का अद्वितीय ज्ञान था, साथ ही साथ उनमें अद्भुत गुण भी थे, वे परंपरागत चिकित्सा के ज्ञाता तथा वृक्षों, नदियों एवं पशुओं से संवाद करने की कला के पारंगत व्यक्ति थे। उनके बांसुरी बजाने की भावाभिव्यक्ति लोगों में शांति, सुचिता, समन्वय और सुख के रूप में होती थी इसी कारण तत्कालीन समुदाय के लोग उन्हें कृष्ण के रूप में मानते थे। उन्होंने सदैव कुरीतियों का विरोध किया, शोषण के विरुद्ध आवाज उठाते हुए युवाओं का एक समूह तैयार किया तथा आगे का संघर्ष जारी रखा। वे अपने धर्म ग्रंथों से प्रेरित, प्रकृति के संरक्षण के प्रति सजग और सचेत तथा दिनचर्या में शाकाहार का पालन करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने समाज में सुधार के लिए धार्मिक जागरूकता फैलाई। आदिवासियों को उनके पारंपरिक धर्म और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ा। उन्होंने मिशनरियों के धर्मांतरण अभियान का विरोध किया और आदिवासी परंपराओं को संरक्षित करने का प्रयास किया। धर्मो रक्षति रक्षतः की परंपरा का अनुसरण करने वाले वे आध्यात्मिक पुरुष, मार्गदर्शक, भविष्यदृष्टा थे, लोग उन्हें ‘वीर बिरसा’ के रूप में भी जानते थे। वस्तुतः ज्ञान के लिए तीन आवश्यक पक्ष है प्रथम अनुमान के आधार पर प्राप्त हो दूसरा अनुभव से प्राप्त हो और तीसरा सानिध्य से प्राप्त हो। यह ज्ञान की अविरल परंपरा जनजातीय समुदाय में रची बसी है, इसका संरक्षण और प्रसार की निरंतरता आवश्यक है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पदमश्री सम्मानित श्रीमती दुर्गा बाई व्याम ने सावन के महीने में जनजातीय समुदाय द्वारा गाए जाने वाले गीत के माध्यम से लोगों को प्रेरित किया और यह बताया कि इस गीत के माध्यम से हम सभी आपसी संवाद, मनोरंजन और कार्य तीनों एक साथ करते हुए कार्य को सही आयाम प्रदान करते हैं।

विशिष्ट अतिथि के रूप विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता अकादमी प्रो. आलोक श्रोत्रीय जी ने कहा कि आज का दिन अत्यंत गौरव का क्षण है कि हम सभी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती समारोह में उपस्थित हुए हैं। वास्तव में भगवान बिरसा मुंडा जल जंगल और जमीन के प्रति अनुराग सदैव से था, वह धरती तथा प्रकृति से जुड़े रहना अत्यधिक पसंद करते थे। वह किसी व्याधि में या किसी रोगों को ठीक करने के लिए उनके पास अद्भुत दैवीय प्राकृतिक कौशल विद्यमान था। आवश्यक पक्ष यह है कि हम सभी को जनजातीय समुदाय से सामुदायिक भावना, संतोष की भावना, अल्प संसाधनों में जीने की शैली जैसे मूल्यों को सीखना चाहिए। साथ ही साथ यह भी सीखना चाहिए कि हम कैसे भूमि, उपज और जंगल को नुकसान पहुंचाये बिना अपने कार्यों को सही प्रकार से संपादित करें, हम कैसे अपनी संस्कृति से जुड़ाव रखें एवं अपने मस्तिष्क में क्षिति जल पावक गगन समीरा के प्रति सम्मान और संरक्षण की भाव भावना को अपने हृदय मे जागृत करके आत्मसात करें।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि  सुभाष सिंह ने अपने जीवन में घटित संघर्षों का संस्मरण सुनाया। जनजातीय पेंटिंग की महत्ता तथा उपादेयता के बारे में विस्तार से चर्चा किया। पारंपरिक चिकित्सा के जानकार  गोपाल सिंह पुशाम ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए जंगलों में पौधों की औषधीय गुण तथा उनसे रोगों का निवारण विषय पर विस्तार से चर्चा की।

बिरसा मुंडा चेयर के आचार्य प्रो. प्रसन्न कुमार सामल ने कार्यक्रम के अतिथियों के प्रति स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत किया तथा बिरसा मुंडा चेयर की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सफल संचालन उप-कुल सचिव डॉ. संजीव सिंह ने किया तथा कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों के प्रति आभार ज्ञापन विश्वविद्यालय के सह आचार्य एवं जनजातीय प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. वाई. बी. मनोहर ने प्रेषित किया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. एन. एस. एच. मूर्ति, आचार्य प्रो. एस. आर. पाढ़ी, प्रो. राघवेंद्र मिश्रा, प्रो. अजय वाग, प्रो. मनीषा शर्मा, प्रो. जितेंद्र शर्मा, प्रो. जी.एस. महापात्रा, एन. सी. सी. समन्वयक . जितेंद्र सिंह, उप कुलसचिव डॉ. पूजा तिवारी, विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी डॉ. विजय नाथ मिश्रा, डॉ. ललित कुमार मिश्रा, एन.एस.एस. के समन्वयक डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय, डॉ. दिलीप चौधरी, डॉ. जनार्दन, डॉ. सुनीता मिंज, डॉ. प्रवीण गुप्ता, डॉ. दिग्विजय नाथ चौबे, डॉ. पंकज तिवारी, डॉ. अभय प्रताप सिंह, डॉ. विनय तिवारी, डॉ. सौरभ कुमार सहित एन.एस.एस. के स्वयं सेवक तथा स्वयं सेविकाएं एवं एन.सी.सी. के विद्यार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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