"सार्थक अभिभावकत्व: बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव
अनूपपुर । हर माता-पिता अपने बच्चें को सफल देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा आत्मविश्वासी, योग्य और हर क्षेत्र में निपुण हो। लेकिन आज की भागदौड़ और डिजिटल युग में कई बार हम अनजाने में ऐसे कदम उठा लेते हैं जो बच्चों के समग्र विकास में बाधा बन जाते हैं।
अपेक्षा से पहले अपनापन:
बच्चों से अपेक्षाएं रखना गलत नहीं, लेकिन बिना पर्याप्त समय दिए केवल अपेक्षा करना अनुचित है। यदि हम हर दिन थोड़ी देर भी बच्चों के साथ संवाद करें, उनके विचार सुनें, तो यह उनका आत्मबल बढ़ाता है और उनमें जिम्मेदारी का भाव आता है।
मोबाइल से दूरी, साथ में पुस्तक की दोस्ती:
मोबाइल बच्चों की सबसे बड़ी व्याकुलता बन चुका है। अभिभावकों को चाहिए कि वे खुद भी मोबाइल का सीमित उपयोग करें और बच्चों के लिए पढ़ने का आकर्षक माहौल बनाएं। एक साथ बैठकर पुस्तक पढ़ने की आदत न केवल ज्ञान बढ़ाती है, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव भी गहरा करती है।
पाठ पढ़ना एक पारिवारिक परंपरा बनाएं:
हर दिन बच्चें को उसके पाठ का एक भाग माता-पिता के सामने पढ़वाना यह बहुत ही सरल लेकिन प्रभावी अभ्यास है। इससे न केवल भाषा कौशल सुधरता है, बल्कि वह अपनी पढ़ाई को लेकर अधिक गंभीर भी होता है।
पहाड़े याद करवाएं, सीखने की प्रक्रिया में साथ दें:
गणित की ताकत तालिकाओं में होती है। उन्हें खेल-खेल में सिखाएं , गाड़ी में बैठते समय, खाना खाते समय या टहलते हुए। यही छोटे-छोटे प्रयास बड़े परिणाम देते हैं।
आत्म-अध्ययन की आदत डालें:
बच्चों को हर समय निर्देशित करने के बजाय उन्हें योजनाबद्ध पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करें। सप्ताह में एक बार उनकी अध्ययन योजना की समीक्षा करें। यह आदत उन्हें आगे चलकर आत्मनिर्भर बनाएगी।
विद्यालय और अभिभावक सहयोगी नहीं, साथी बनें:
यह आवश्यक है कि माता-पिता विद्यालय और शिक्षकों की भूमिका को समझें और उसका सम्मान करें। बच्चों के सर्वांगीण विकास में विद्यालय और घर दोनों की भूमिकाएं पूरक और सहायक होती हैं। एक-दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय यदि दोनों पक्ष मिलकर काम करें, तो बच्चें के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन संभव है।
विद्यालय सिर्फ अंक देने वाला संस्थान नहीं है, बल्कि वहां पर मूल्य, अनुशासन, सहानुभूति और आत्मविश्वास का निर्माण होता है। इसी प्रकार अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे स्कूल की बातों को गंभीरता से लें, और शिक्षक की भूमिका को केवल 'ट्यूटर' तक सीमित न रखें, बल्कि 'मार्गदर्शक' के रूप में अपनाएं।
शिक्षक केवल अध्यापक नहीं, श्रेष्ठ मार्गदर्शक बनें:
हर शिक्षक को यह समझना ज़रूरी है कि हर बच्चा अलग है , उसकी क्षमता, रुचि और सोचने का तरीका भी अलग है। एक अच्छा शिक्षक वही है जो अपने विद्यार्थी को पूरी तरह समझे, उसकी ज़रूरतों के अनुसार उसे सिखाएं और सही मार्गदर्शन दें।
शिक्षक को केवल विषय विशेषज्ञ नहीं, बल्कि एक ‘काउंसलर’ की भूमिका भी निभानी चाहिए ,जो न केवल शैक्षणिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी बच्चें को संभाल सकें।
निष्कर्ष:
सफलता केवल परीक्षा में अंक लाने से नहीं आती, बल्कि जीवन जीने की कला में निपुण बनने से आती है। यदि अभिभावक, शिक्षक और विद्यालय मिलकर एक ही दिशा में काम करें , तो हर बच्चा न केवल सफल, बल्कि संतुलित, सशक्त और संस्कारी नागरिक बन सकता है।
आइए, साथ मिलकर बच्चों के भविष्य को आकार दें , क्योंकि सफलता अकेले नहीं, साथ चलने से मिलती है।