“जिला चिकित्सालय अनूपपुर – इलाज कम, इल्ज़ाम ज़्यादाnarmadanewstimes. in

 “जिला चिकित्सालय अनूपपुर – इलाज कम, इल्ज़ाम ज़्यादा


!"

अनूपपुर। जिला चिकित्सालय की बीमारू हालत अब किसी से छिपी नहीं। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि करोड़ों रुपये खर्च हुए, पर ज़मीनी हकीकत देखिए तो हॉस्पिटल खुद ICU में पड़ा है। बाहर से देखने पर लगता है मानो एम्स की शाखा खुल गई हो, पर अंदर घुसते ही एहसास होता है — “अंधों में काना राजा” ही डॉक्टर कहलाता है।

 *दांत का दर्द, पर इलाज आधा अधूरा*

आजकल खान-पान की गड़बड़ी के कारण हर उम्र के लोग दांतों की बीमारियों से परेशान हैं। सरकार ने राहत देने के लिए करोड़ों खर्च कर आधुनिक दंत उपकरण खरीदे और चार डॉक्टर भी नियुक्त किए। मगर हकीकत ये है कि इन डॉक्टरों की “सेवा” दांत धोने और मसाला पेस्ट लगाने तक सीमित है।

*मरीजों को वही पुराना संवाद सुनने को मिलता है —*

“पहले प्राइवेट क्लीनिक में एक्स-रे करवाओ, फिर इलाज करेंगे।”

क्योंकि सरकारी एक्स-रे मशीन महीनों से खराब पड़ी है। रिपोर्टें ऊपर भेजी गईं, लेकिन फाइलें अब धूल खा रही हैं — जैसे मरीज का दर्द।

 *एक्स-रे की जगह एक्स-रेट!*

जब मरीज प्राइवेट क्लीनिक में पहुंचता है तो वहां उसका “एक्स-रे” नहीं, “एक्स-रेट” तय किया जाता है — ₹300 से ₹500 तक। दर्द से तड़पता मरीज पैसे देकर लौटता है, या फिर असहनी दर्द के कारण प्राइवेट क्लीनिक का शिकार हो जाता है।

आमजन में चर्चा है कि मशीन का सुधार जानबूझकर नहीं किया जा रहा, ताकि “कमिशन की मशीन” चलती रहे। आखिरकार सरकारी अस्पताल हो या प्राइवेट, दोनों की डोर एक ही जेब में बंधी है।

 *मरीज नहीं, फाइल समझते हैं लोग*

पुराने डॉक्टर अब इतने “अनुभवी” हो चुके हैं कि मरीज को देखकर पहले गुस्सा आता है, दया नहीं। किसी को झिड़कते हुए कहते हैं —

“हटो यहां से, जो करना है कर लो!”

वो डॉक्टर जो कभी एक अटैची लेकर  आए थे, अब करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। सवाल उठता है — इतना धन आया कहां से? जवाब भी उतना ही सीधा है — जनता के दर्द में ही इनका व्यापार है।

 *अफसरों की मजबूरी और डॉक्टरों की पहुंच*

जवाबदार अधिकारी एवं मंत्री भी इनसे परेशान हैं। कोई सुधार की बात करे तो डॉक्टर धमकी दे देते हैं —

*“हम नौकरी छोड़ देंगे।”*

और अधिकारी और मंत्री सोच में पड़ जाता है कि “भैया, अगर ये चले गए तो मरीजों को डांट कौन लगाएगा?”

वैसे भी इस छोटे जिले में शहरों के अनुभवी डॉक्टर आना पसंद नहीं करते, क्योंकि यहां ना मॉल है, ना कैफ़े, ना ही “फोटो फ्रेंडली लाइटिंग।” 

*अंत में सवाल वही पुराना — जनता कहां जाए?*

यहां हालात ऐसे हैं कि जनता दर्द से कराहती रहती है, और डॉक्टर सोचते हैं — “हम तो रुपया कमाने आए हैं।”

कहावत है —

*“जहां गधे नहीं, वहां गधा भी बाप कहलाता है।”*

अनूपपुर का जिला अस्पताल आज उसी कहावत का जीता-जागता उदाहरण है। यहां इलाज नहीं, इल्ज़ामों की रिपोर्टिंग होती है।

और शायद अब जनता को भी समझना होगा —

*“यहां इलाज नहीं, सिर्फ अनुभव मिलता है... वो भी कड़वा!”*

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