अनूपपुर फ्लाईओवर ब्रिज: "अंधेर नगरी चौपट राजा" की जीती-जागती मिसाल
अनूपपुर। जब से वर्तमान जिला प्रशासन ने कमान संभाली है, अनूपपुर के विकास की गाड़ी मानो उल्टी दिशा में दौड़ पड़ी है। वर्षों से निर्माणाधीन फ्लाईओवर ब्रिज अब एक ऐसे मज़ाक में तब्दील हो चुका है, जो जनता की सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा है।
ब्रिज का निर्माण इस तरह किया जा रहा है जैसे यह एशिया का पहला और अद्वितीय प्रोजेक्ट हो , लेकिन हकीकत यह है कि कई जिलों में बाद में शुरू हुए ब्रिज कब के बनकर चालू हो चुके हैं, और अनूपपुर का फ्लाईओवर ब्रिज आज भी कछुए की चाल पर सरक रहा है।
जैसे ही जनता का गुस्सा सोशल मीडिया पर फूटता है, प्रशासन की एक रटी-रटाई स्क्रिप्ट शुरू हो जाती है , अधिकारी ब्रिज स्थल पर पहुंचते हैं, कलेक्टर साहब तस्वीरें खिंचवाते हैं, कर्मचारियों को सार्वजनिक रूप से फटकारा जाता है, और फिर जनसंपर्क विभाग के ज़रिए एक "प्रेस विज्ञप्ति" जारी कर दी जाती है। यही "खाना पूर्ति" एक बार फिर जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास बनकर रह जाती है।
इससे पहले भी मंत्री, सांसद, विधायक और तमाम नेताओं ने साइट विजिट कर फोटो खिंचवाने की रस्म अदायगी कर ली है, लेकिन ठोस कार्रवाई आज तक नदारद है।
सबसे बड़ा सवाल यह है: ठेकेदार पर मंत्री से लेकर संत्री तक का कोई असर क्यों नहीं हो रहा? क्या अनूपपुर की जनता को जानबूझकर अंधेरे में रखा जा रहा है?
ब्रिज के निर्माण की शुरुआत से अब तक कितने जिले विकास के पथ पर दौड़ पड़े, लेकिन अनूपपुर का फ्लाईओवर ब्रिज अब बस एक मुंगेरीलाल का सपना बनकर रह गया है या कहें राहुल के प्रधानमंत्री बनने की कल्पना जैसा!

