अमरकंटक में भार्गव ऋषि के सोलह महीने की अखंड साधना के बाद हर वर्ष भक्त करते है पूजन , हवन और भंडारा । विश्व कल्याणार्थ भक्त प्रतिवर्ष करते है रुद्राभिषेक , हवन व पूजन । भक्तो को 2010 में बद्रीनाथ के नारायण पर्वत पर मिला था अंतिम दर्शन ।

 अमरकंटक में भार्गव ऋषि के सोलह महीने की अखंड साधना के बाद हर वर्ष भक्त करते है पूजन , हवन और भंडारा ।


विश्व कल्याणार्थ भक्त प्रतिवर्ष करते है रुद्राभिषेक , हवन व पूजन ।


भक्तो को 2010 में बद्रीनाथ के नारायण पर्वत पर मिला था अंतिम दर्शन ।


अमरकंटक - श्रवण उपाध्याय 

  मां नर्मदा जी की उद्गम स्थल  पवित्र नगरी अमरकंटक में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद निवासी श्रीकांत त्रिपाठी ( भार्गव ऋषि ) जिनका बचपना यहीं पर गुजरा और उन्होंने बी एस सी तक पढ़ाई फैजाबाद में करने के बाद वे बी टेक की पढ़ाई जम्मू से पूरी की । वे हार्ड वेयर के इंजीनियर रहते हुएं उन्होंने जम्मू के एक प्रा


इवेट विद्यालय में शिक्षक के पद पर रहकर नौकरी किए । कुछ समय बाद वहीं से उनको वैराग का प्रभाव पड़ने लगा । समय बीतता गया फिर उन्होंने नौकरी छोड़ कर वहीं एक मित्र के पास रहने लगे । कुछ समय रहने के बाद वे विंध्याचल (मिर्जापुर) चले आएं और अष्टभुजी माता मंदिर  तालाब के पास हनुमान जी के मंदिर में रह कर साधना करने लगे । दो साल साधना के बाद वे अमरकंटक चले आएं । कुछ दिन बीतने के बाद उन्होंने जमुनादादार जंगल किनारे बरगद वृक्ष के नीचे छोटी सी कुटिया (घास फूस) बना कर तपस्या में लीन हो गए । भार्गव जी निराहार रहकर गाय के दूध का सेवन मात्र कर बरगद वृक्ष नीचे बैठ अखंड दीप प्रज्वलित कर , रोजाना रुद्राभिषेक , हवन , पूजन और कठोर तपस्या करने लगे । अमरकंटक में उनका आगमन 2007 में हुआ और सोलह माह तक तपस्या में लीन रहे । उनके मुख्य पुजारी अमेठी गौरीगंज के आचार्य दुर्गा प्रसाद त्रिपाठी ने चर्चा के दौरान सारी जानकारी दी । यह भी बताया की भार्गव ऋषि जी अमरकंटक में तपस्या पूर्ण करने के बाद वे सांगीपुर (प्रतापगढ़) चले गए उसके बाद उन्होंने 2009 में उत्तरकाशी उत्तराखंड की ओर प्रस्थान कर गए । एक वर्ष बीतने के बाद उत्तरकाशी से पांडुकेश्वर चले गए वहां भी लगभग एक वर्ष पूरा करने के बाद बद्रीनाथ के आगे नारायण पार्वत पर गुफा में रह कर तपस्या में लीन हो गए जबकी वहां की सरकार अलकनंदा नदी के पास बना देवहरा बाबा आश्रम में रहने की अनुमति दी थी । 

भार्गव ऋषि के भक्तगण बद्रीनाथ का पट खुलने पर अपने गुरु के दर्शन हेतु जाते रहते थे , बर्फबारी ज्यादा होने पर किसी को ऊपर जाने की अनुमति नहीं रहती थी , जब उधर जाने का रास्ता मई 2010 माह में खुला तब उनके कुछ भक्त उमाशंकर सिंह परिहार सांगीपुर(प्रतापपुर) , करउणएश्वर झा, अभय सिंह , प्रताप सिंह व अन्य साथीगण गए तब गुफा में ताला बंद मिला , द्वार पर चाबी रखी थी और थोड़ा आगे कुछ पैसा , कागज रखा मिला लेकिन गुरु जी नही मिले । काफी जानकारी लिए लेकिन उनका पता नहीं लगा और अंत में भक्तगण निराश हो कर वापस लौट आएं तब से आज तक गुरु के वापस आने का सभी को इंतजार है ।

उन्ही की याद में 2007 से लगातार आज तक कार्तिक मास की पूर्णिमा को सभी भक्तजन अमरकंटक के उस तपस्थली स्थान पर प्रतिवर्ष आकर बरगद वृक्ष नीचे बना चबूतरे व चारो तरफ साफ सफाई और लीप पोत कर स्वच्छ कर आचार्य द्वारा विधि विधान से रुद्राभिषेक , पूजन अर्चन बाद हवन कर , नगर भंडारा का आयोजन करवाया जाता है । जिसमें कन्या , संत महात्मा , ब्राम्हण , नगर वासी , आगंतुक जन सभी इसमें शामिल होकर भार्गव ऋषि के भंडारे में शामिल होकर प्रसाद ग्रहण करते हैं और भक्तजन दक्षिणा प्रदान कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । इसमें मुख्य रूप से संतोष सिंह परिहार उनका परिवारजन श्रीमति रीमा सिंह पुत्री अंजली सिंह पुत्र सचिन सिंह  प्रतापगढ़ , भानु प्रताप सिंह , डा. घायल , अशोक दुबे यूको बैंक शाखा प्रबंधक अयोध्या , बलराम तिवारी अयोध्या , राकेश यादव अयोध्या , अतुल यादव , ओम प्रकाश तिवारी प्रतापगढ़ , सुरेंद्र सिंह , अनूपचंद ओझा , मदन ओझा , रामविलास पांडेय अमरकंटक , श्रीमति सत्यभामा पांडेय , श्रीमति उषा पांडेय , कमलेश पांडेय , उमा पांडेय , रमा पांडेय , अभिषेक पांडेय आदि भारी संख्या में शामिल होकर कार्यक्रम को प्रतिवर्ष सफल बनाते है ।

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