*जाके पैर न फटे बिवाई वो का जाने पीर पराई
अनूपपुर/एम .पी .वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन प्रदेश अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा जी ने उपरोक्त शीर्षक पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देर आए दुरुस्त आए कहावत चरितार्थ हो रही है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो निर्णय आज से 10 वर्ष पूर्व लेना चाहिए था उस पर अमल करते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए एक समिति का गठन किया है अभी इस समिति में कौन पत्रकारों को लिया जायेगा स्पष्ट नहीं है। खैर जो जब होता है अच्छा ही होता है।
मैंने जो हेडिंग दी है उसका कारण यह है कि आज के देश के बड़े समाचार पत्र *पत्रिका में पत्रकार सुरक्षा कानून* बनाने के लिए जो समिति की घोषणा की गई है उसके समाचार पढ़ने को नहीं मिला हो सकता है कि गुलाब कोठारी जी ने वाय काट करने के लिए भोपाल के संपादक एवं पत्रकारों को निर्देश दिए होंगे। वैसे भी लगभग सभी बड़े समाचार पत्रों के मालिकों ने अघोषित आपातकाल लागू कर रखा है कि पत्रकार किसी भी यूनियन का सदस्य नहीं बनेगा बेचारे पत्रकारों को नौकरी जो करनी है।
*एक कहावत है नाम दरोगा रख दो*
मुझे एक घटना याद आ गई कांटाफोड़ के पत्रिका के संवाददाता पर प्रकरण दर्ज हो गया था परन्तु मालिक या संपादक ने कोई मदद नहीं की अंत में एम .पी. वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने मुख्यमंत्री से सी आई डी जांच की मांग की और उस जांच में वह पत्रकार बेगुनाह साबित हुआ। अब एक अन्य समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित किया गया है कि पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने वाला देश का तीसरा राज्य बना मध्यप्रदेश । मैं यहां सत्येन्द्र खरे की बात पर सहमत हूं पत्रकार बिरादरी से है मेरी उनसे अभी तक सम्मुख बात नहीं हुई परंतु पत्रकारों के हित में जो संदेश मैंने उन्हें दिया उस पर अमल कराने का प्रयास किया। पिछले वर्ष बीमा योजना की राशि कम करने की उनकी पहल थी मांग एम पी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की थी । मेरा अपना विचार है कि इस समिति में श्रम विभाग में पंजीयन प्राप्त यूनियन के सदस्यों को नामित किया जाना चाहिए।