*महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू नए भारत की जनजातीय गौरव और महिला सशक्तिकरण की जीवंत प्रतीक: प्रो. विकास सिंह
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अनूपपुर।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में जनजातीय गौरव पखवाड़ा (01 नवम्बर से 15 नवम्बर 2025) के अंतर्गत आज एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन स्वदेशी जागरण मंच तथा राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिसका विषय था — “नए भारत के परिप्रेक्ष्य में जनजातीय गौरव का महत्व।” इस कार्यक्रम में छात्रों, अध्यापकों, एवं सामाजिक संगठनों ने जनजातीय समाज की गौरवशाली परंपराओं, इतिहास, संघर्षों और समकालीन उपलब्धियों पर विमर्श किया। कार्यक्रम का शुभारंभ जनजातीय देवताओं की वंदना और धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के गौरव गाथा पर विमर्श से शुरू हुआ।
मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए स्वदेशी शोध संस्थान के राष्ट्रीय सचिव एवं स्वदेशी जागरण मंच के महाकौशल प्रांत के प्रांत सह-संयोजक प्रो. विकास सिंह ने कहा कि — “महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू आधुनिक भारत की जनजातीय गौरव गाथा और महिला सशक्तिकरण की सबसे सशक्त प्रतीक हैं। वे न केवल मातृशक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होकर करोड़ों जनजातीय परिवारों के गौरव का प्रतिनिधित्व करती हैं।”
प्रो. विकास ने आगे कहा कि रैरंगपुर से रायसीना हिल्स तक की उनकी यात्रा इस बात का जीवंत प्रमाण है कि भारत में आज अवसरों का लोकतंत्र हर वर्ग तक पहुंचा है। राष्ट्रपति मुर्मू का सादा जीवन, सेवाभाव और जनजातीय मूल्यों के प्रति निष्ठा, उन्हें ‘धरती की बेटी से राष्ट्र की जननी’ के रूप में प्रतिष्ठित करती है।
प्रो. सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा 15 नवम्बर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय एक ऐतिहासिक पुनर्स्मरण है। यह न केवल भगवान बिरसा मुंडा की जयंती का सम्मान है, बल्कि जनजातीय संस्कृति, परंपरा, स्वाभिमान और विकास को राष्ट्रीय नीति के केंद्र में लाने का प्रतीक है तथा करोड़ों जनजातीय परिवार को सम्मान देने का जीवंत कार्य है।
ऑनलाइन मोड से जुड़े विश्वविद्यालय के कार्य परिषद के सदस्य तथा एबीवीपी के पूर्व विभाग संगठन मंत्री तथा मध्य क्षेत्र स्वावलंबन केंद्र प्रमुख मोरध्वज पैकरा ने कहा की स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में जनजातीय समाज के बलिदान और योगदान को लंबे समय तक उपेक्षित किया गया, जबकि भारत की स्वतंत्रता की नींव में उनके संघर्षों की गूंज सदैव रही है। उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, तिलका मांझी, टांट्या भील, रानी दुर्गावती, शंकर शाह–रघुनाथ शाह और रानी गाइदिनल्यू जैसे वीरों ने अपने अदम्य साहस से अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी और जनजातीय चेतना को जागृत किया। स्वदेशी जागरण मंच और स्वदेशी शोध संस्थान देश के विभिन्न प्रांतों में जनजातीय उद्यमिता, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति के पुनरुद्धार के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने IGNTU के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय भारत के जनजातीय बौद्धिक नवजागरण का केंद्र बन रहा है।
मोरध्वज पैकरा ने आगे कहा की भारत में जनजातीय समाज केवल संरक्षण का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण का प्रमुख सहभागी है। आज जब देश विकसित भारत @2047 के पथ पर अग्रसर है, तब जनजातीय समाज की भागीदारी ही भारत की आत्मा को पूर्णता प्रदान करती है। भारत की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू का जीवन यह प्रमाणित करता है कि शिक्षा, संस्कार और स्वाभिमान के बल पर कोई भी जनजातीय बेटी राष्ट्र की दिशा बदल सकती है।
कार्यक्रम के अंत में छात्रों ने “धरती आबा अमर रहें” और “जय जनजातीय भारत” के नारों से सभागार गुंजायमान कर दिया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से महाकौशल प्रांत के युवा आयाम प्रमुख डॉ विनोद वर्मा, डिंडोरी जिला संयोजक हरिश्चंद्र विश्वकर्मा, शोध विद्वान विशाल ताम्रकार, आयन ब्रह्मा, शबनम इराकी, रोहित श्रीवास, प्रशांत अग्रवाल, गौरव सिंह, डॉ. दिनेश परस्ते, डॉ. आशीष गुप्ता, डॉ. पंकज प्यासी सहित सैकड़ो की संख्या में युवा छात्र एवं शिक्षक उपस्थित थें।

